मुस्कराती हुई पलकों पे ,
सनम चले आते हो ,
आप क्या जानते हो ,
कहाँ से हमारे गम आते हैं,
हम आज भी उस मोड़ पर खड़े थे,
जहाँ किसी ने कहा था कि ,
ठहरो हम अभी आते है...
वो रात भी दर्द और सितम ,
से भरी रात थी ,
जिस रात उनकी बारात होगी,
उठ जाता हूँ मैं ,
ये सोचकर नींद से अक्सर,
"कि "
एक गैर की बाहों में ,
मेरी सारी कायनात
होगी...
दर्द से हाथ न मिलाते तो ,
और क्या करते,
गम के आँसू न बहाते तो ,
और क्या करते,
उसने माँगी थी हमसे ,
रौशनी की दुआ,
हम अपना घर न जलाते तो,
और क्या करते।।
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