मैं बनूँ दुल्हन उसकी लेकिन अभी ,
है नहीं शायद मेरी किस्मत में,
क़रार मिलता नहीं हमें,
कितनी बेचैनी है ये प्यार में ।
सारा श्रृंगार फीका है मेरा ,
कहीं ख़बर ना हो उसे टूटे दिल की ,
फिर क्या बात हुई मेरे बाद में ।
कैसी दीवार बनाई है ये सहनाई की ,
जो हमें मिलने नहीं देती आपसे ,
जहाँ एक वर्ष गुज़ार आए हम ,
तन्हां उनके ही इंतज़ार में ।
रोज़ सजती हूँ देखो उनके नाम से ,
और हम मुस्कुरा जाते हैैं उनके आसियान से,
हमें ख़ुद की नहीं परवाह हमें ख़्याल उनका है ,
इश्क़-ए-ख़ुमार में हम उनके सहवाग है ।
थकान उतर आई है अब मेरी ,
और दिल है दीवानगी में ,
मेरा वजूद हो जाए पूरा अगर ,
सहारा हो उनके जीवन निसार में ।
तू कर मेरा ये काम अपनी हिम्मत से जिससे ,
महक जाए जात मेरी ये सोचकर ,
जैसे गुलशन महका हो बहार में ।
कुछ कहना तो चाहता है दिल उनका भी ,
लेकिन कुछ कह नहीं पाता,
सायद उनकी कि चाहत अच्छी नहीं ,
पता नहीं क्या बात हुई इज़हार में ।
By- रिंकू विराट
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