हर एक दिन देखो ना अब ,
कितनी जल्दी ढलने लगा है ,
जो कभी एक ग्लास पानी तक ,
खुद उठ कर नहीं पीता था गाँव में ,
जब शहर में आया तो अपना ,
हर काम खुद करने लगा है ,
जब कभी परिवार से दूर हो जाने पर,
वह डर जाया करता था ,
आज दिल उसका हर पल जैसे,
भर जाया करता है अपने काम में,
आज वो दूर अपने परिवार से होकर ,
रहने लग गया है शहर में ,
ना जाने उल्टे सीधे ख्यालों में ,
अब किस तरह जीने लगा है,
वह अपने ही अल्फाजो में ,
जो कभी खुद खाना ना बनाता था ,
आज वह खाना बनाकर खाता है ,
कभी बातचीत हो जाती है फोन पर परिवार से,
धीरे-धीरे आँखे मेरी भर आती है आँसुओ से,
ना जाने कितने सपने अपने मन में बनाता हूँ,
दूसरा चाहे कुछ भी कहे फिर में अपने मन की सुनता हूँ,
दुख लेकर अपनो का मैं अपनी खुशियाँ ,
ना जाने कब लूटा पाऊंगा अपनो में ,
अब काफी दिन हो लिए अपनो से मिले हुए,
ना जाने अपनो के साथ खुशियों के पल
कब बिता पाऊंगा,
काम को लेकर थोड़ी बहुत परेशानी है ,
आज याद आई फिर वो बचपन की कहानी है,
उन्होंने कहाँ उल्टे सीधे अपने मन में ना कोई सवाल रखा कर ,
बस काम पर ध्यान और तू अपना ख्याल रखा कर,
देखो काफी दिनों बाद छुट्टी भी मिल ही गई ,
खुशियाँ दिल की चेहरे पर फिर से खिल ही गई,
देख कर अपनो को चेहरा वह मुस्कुराया है ,
" और देखो ना "
आज वह अपने ही घर में मेहमान बनकर आया है।
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