"हसीनाओ के हसीन गुलाब
अब किताबों में मुरझाने लगे हैं,
कुछ लम्हें उनके जो अब ,
औरों के संग मुस्कुराने लगे हैं,
उन दिनों में दीवानों की महफिल थी ,
और उनको वीरान कर गए ,
हमारी हस्ती खेलती ज़िंदगी थी ,
जिसे शमशान कर गए ,
ना फिकर आज की ,
ना कल का सोचा ,
आँसू भवाये रात भर ,
किसी ने ना पूछा...
दुनिया और रिश्तेदारों के ,
बहुत से ताने सुना हूँ में...
हमेशा सिर्फ और सिर्फ ,
नफरत की और धकेला गया हूँ ,
मैं...
मुद्दतों से दिखाई नहीं दिया तो ,
लगा उन्हें की मर गया हूँ ,
मैं...
अरे साया चलता है मेरी माँ का,
कौन कहता है की अकेला हूँ ,
मैं...
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