Place this code on every page across your site and Google will automatically show ads in all the best places for you आपके और मेरे जीवन की खट्टी-मीठी बातें: आपको अपनी Life में अहम फैसले कब और किस समय लेने चाहिए।

आपको अपनी Life में अहम फैसले कब और किस समय लेने चाहिए।

जब मैं स्कूल में था तब मैं अपने आपको किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझता था।

शुरू से ही मैं अलवर के एक गाँव की स्कूल में पढ़ रहा था। हमेशा टॉप पर ही आता था। लेकिन किसी कारणवश में 6th क्लास मे फेल हो गया था फिर सेकंड बार 6th क्लास में मैने टॉप किया । मैं ज़्यादा पढ़ाकू किस्म का नहीं था लेकिन स्मार्ट वर्क के कोड को मैंने अपने जीवन मे अपना लिया था।

सभी टीचर्स के बीच अच्छी रेप्यूटेशन थी मेरी , कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कार मिलते रहे मुझे , तो बस मैं समझता था कि "हम तो हम हैं…!" ओर कोई नहीं है...।

मेरा शरुआत से घर में पढ़ाई करके नौकरी करने का ऐसा कोई खास माहौल नहीं था क्योंकि घर का काम ज्यादा ओर पढ़ाई का कम किया करता था ।10th क्लास पास करने के बाद मुझे अपने आप मे इतना परेशान हुआ कि "पूछो ना" क्योंकि वह मेरी जिंदगी का सबसे अहम फैसला था । ये मुझे 11th क्लास में आकर पता चला की कोनसा सब्जेक्ट , कोनसा फैसला ले सकता हूँ मैं ।  ग्यारहवीं में आकर पता चला की (एग्रीकल्चर में) केमिस्ट्री और बायोलॉजी   नामक कोई चिड़िया भी होती है, जिसे पास करने पर मुझे एक अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल जाता है।

मैने सोचा चलो ठीक है ये भी करके देख लेते हैं। प्रवेश परीक्षा भी अच्छी रेंक से निकाल ली। उस समय मेरा JET जयपुर से क्लियर हो चुका था । पहली वाली परीक्षा से राजस्थान के सभी अच्छे कॉलेज जोबनेर यूनिवर्सिटी व दूसरी से जोधपुर यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में प्रवेश मिलता था। लेकिन दोनों में अच्छी रेंक नहीं आने के कारण मुझे जयपुर के जगगन्नाथ कॉलेज में एडमिशन मिल गया। ये प्रदेश का सबसे अच्छा व पुराना एग्रीकल्चर कॉलेज था।

अब हम जा पहुँचे कॉलेज में, लेकिन वहां देखा तो माहौल ही अलग था। मुझ जैसे मुझ जैसे बहुत से लोग थे वहां मेने देखा कि बारहवीं तक कि परीक्षाओं में अच्छे अंक लाना, स्कूल का टॉपर होना बिल्कुल आम बात थी।

पता चला HR बोर्ड की पढ़ाई की कुछ वैल्यू ही नहीं है। अधिकतर छात्र CBSC बोर्ड के थे। हर कोई मुझे मुझसे अच्छा प्रतीत होने लगा था।

आपको याद होगा 3 इडियट्स के राजू रस्तौगी ने कहा था:

"जब मैं यहां (इंजीनियरिंग कॉलेज) आया तो देखा रेस लगी हुई है। हर कोई फर्स्ट आने की दौड़ में लगा हुआ है। मैं डरने लगा। फियर इस नॉट गुड फ़ॉर ग्रेड। मैं और अँगूठिया पहनने लगा। भगवान से भीख मांगने लगा।"

मुझे लगता है राजू रस्तौगी यहीं गलत हो गया।

भाग्य से मुझे जल्दी ही समझ आ गया कि यहां रेस लगाने से कोई फायदा नहीं। मुझे बस अपने आप से रेस लगानी चाहिये। आज जैसा मैं हूँ कल उससे और अधिक अच्छा होने की कोशिश करूंगा।

अगर मैं तुलना करने बैठूंगा तो उसका कोई अंत ही नहीं होगा। राजस्थान राज्य के श्रेष्ठतम और कुछ दूसरे राज्य के भी श्रेष्ठ बच्चे यहाँ हैं। शायद दस-बारह ब्रांच मिलाकर 700-800 बच्चे होंगे। किस-किस से कंपीटीशन करूंगा।

पहले सेमेस्टर में मेरे कुछ 78% अंक आये। एग्रीकल्चर scince के हिसाब से ये बहुत अच्छे थे। हालांकि मैंने कॉलेज में  स्कूल के मुकाबले कम पढ़ाई की थी।

बस मैंने ठान लिया कि हर सेमेस्टर में मुझे बस अपने पिछले सेमेस्टर के मुकाबले ज्यादा अंक लाना है। किसी से नहीं बस अपने आप से कंपीटिशन करना है।

मज़े की एक बात देखिए, ये मेरी थर्ड ईयर के पहले सेमेस्टर की मार्क-शीट। आर्गेनिक केमिस्ट्री में पास होने के लिए चाहिए थे "36 नम्बर" और मैं ठीक 36 नम्बर ही लाया। लेकिन फिर भी टोटल में पिछले सेमेस्टर से ज़्यादा नम्बर लाया।

मेरा हौसला कम नहीं हुआ। आखरी सेमेस्टर में मै 86% मार्क्स लाया। जो हमारे कॉलेज में एग्रीकल्चर scince

में चमत्कार से कम नहीं था।

तो सबसे महत्वपूर्ण फैसला क्या था?

यही की खुद से ही दौड़ लगानी है, किसी और के साथ नहीं। खुद के ही वर्ल्ड रिकॉर्ड को हर बार बीट करना है। अपनी रेस खुद चुनना है। दूसरों से तुलना करने बैठेंगे तो उसका कोई अंत ही नहीं है। इस एटीट्यूड ने बहुत मदद की है मेरी, लगभग हर फील्ड में।

                                 ~ रिंकू विराट

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