उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे
कहाँ तक इस मन को अंधेरे में रखेंगे
उदासी भरे दिन कभी तो ढलेंगे।
कभी सुख और कभी दुख, यही जिंदगी का सार हैं।
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी से ही पार हैं।
हो सकता हैं नये फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन कभी ना कभी तो ढलेंगे।
भले ही तेज कितना, हवा का हो झोंका हो,
लेकिन अपने मन में रखना तू ये भरोसा
जो भी बिछड़े सफ़र में तुझे, फिर मिलेंगे,
उदासी भरे दिन कभी ना कभी तो ढलेंगे।
चाहे कहे कोई कुछ भी, मगर सच यही है।
प्यार की लहर जो कहीं उठ रही है।
उसे एक ना एक दिन तो किनारा मिलेगा ही,
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