कभी कभी में बाहर ,
खाना खा कर आता था ,
उंगली ना जले माँ की तवे पर ,
इसलिए में उन उंगलियों को ,
अब वो बनाती थी रोटी तवे पर ,
तो बिना चिमटे के उनकी ,
उंगलियां जल जाया करती थी ,
उस नजारे को देख कर ,
घर पे में रोटियां कम ,
और बाहर ज्यादा खाया करता था,
रोज रोज वो लम्हा जीवन में ,
मेरे आंखो को नम कर जाया करता था ,
माँ के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान होती ,
और वो लम्हा मेरे दिल को भा-जाया करता था
कभी कभी कोई आया करता घर,
तो पैसे दे जाया करता था ,
में उन्हें बचा कर रख लेता था ।
देकर मां को अपने हिस्से की खुशी ,
खुद उनके गमो का स्वाद चख लिया
करता था ।
पला बड़ा में जो माँ के लाड प्यार से ,
और
लम्हे बिताया करता में तो बस ,
मेले के इंतजार में ।
By- रिंकू विराट
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