जीवन अब रुपये और पाई-पाई में बीत रहा है।
जीवन में दर्द को ही दवा कहाँ गया है ,
बाकी जीवन अब दवाई में बीत रहा है ।
रोज के मुकदमे और रोज की सजा है ,
अब सारा जीवन सुनवाई में बीत रहा है।
जीवन मे हर एक इंसान की जान सस्ती है,
फिर भी सारा जीवन महंगाई में बीत रहा है।
जीवन मे खुआइसों का बोझ है इतना ज्यादा,
"की"सारा जीवन अब तन्हाइयों में बीत रहा है।
~ रिंकू विराट
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